राजनीतिक दलों की ओर से चुनावी घोषणापत्र में किए गए उनके वादे भ्रष्ट आचरण नहीं माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कानून का जिक्र करते हुए कहा है कि अपने चुनावी घोषणापत्र में राजनीतिक दलों द्वारा वादा किया जाना भ्रष्ट आचरण के समान नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कांग्रेस के एक उम्मीदवार के चुनाव को चुनौती देने वाली चामराजपेट विधानसभा क्षेत्र के एक मतदाता की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।याचिका में आरोप लगाया गया कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में जनता को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद देने की प्रतिबद्धता जताई थी, जो भ्रष्ट चुनावी आचरण के बराबर है। याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकील का यह तर्क कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में किए गए वादे, जो अंततः जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद पहुंचाती हैं, उस दल के उम्मीदवार द्वारा किया गया भ्रष्ट आचरण भी मानी जाएंगी। यह बहुत दूर की कौड़ी है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
चुनाव आयोग ने 2 मई को राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे पैम्फलेट के रूप में गारंटी कार्ड वितरित करके किसी भी रूप में मतदाताओं का डेटा एकत्र न करें, जिसमें संभावित व्यक्तिगत लाभों का विवरण हो, साथ ही मतदाताओं का विवरण मांगने वाला एक फॉर्म भी संलग्न हो। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने इस मुद्दे को हमेशा के लिए स्पष्ट कर दिया है।